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    Chayan Maiti (Maiti Da) | R. P. Hall Stationary Shop

    March 10, 2024

    यद्यपि आपके मन में यह विचार आता है कि आई.आई.टी. खड़गपुर के छात्रों का जीवन आज से 45 वर्ष पहले कैसा था, तो इसका सबसे सटीक उत्तर आज की तारीख में सिर्फ ‘मैती दा’ ही दे सकते हैं।

    राजेंद्र प्रसाद छात्रावास उर्फ़ आर.पी. हॉल में राशन की छोटी सी दुकान चलाने वाले मैती दा आज भी अपनी दिनचर्या में बदलाव नहीं लाते जिससे बच्चों को किसी प्रकार की दुविधा न हो। शुरुआत में मैती दा ने अपनी दुकान मिनी मार्केट में खोली थी, जो एस.बी.आई. बैंक दफ़्तर के सामने स्थापित था। कुछ वर्ष पश्चात मिनी मार्केट कैंपस के बाहर स्थानांतरित किया गया। दादा को उस समय आर.पी. हॉल के आगे वाले हिस्से में ही एक छोटा सा कमरा दिया गया जिसमें उन्होंने अपनी रोज़ी-रोटी का ज़रिया ढूंढ लिया।

    दादा बताते हैं कि जब वे आर.पी. हॉल में नए थे तब आर.पी. हॉल में विदेश के बच्चे पढ़ने आया करते थे। अफ़्रीका के विभिन्न भागों से जो छात्र खड़गपुर आते थे, आर.पी. हॉल में ही रहते थे। धीरे-धीरे आर.पी. हॉल में भारतीय छात्रों की संख्या बढ़ गई। शुरूआती दिनों में आर.पी. हॉल में लगभग १५०-२०० छात्र होते थे जब कि आज ७५० से भी ज़्यादा रहते हैं। मैती दा उनके साथ खूब मस्ती करते अपना दिन गुज़ारा करते थे।

    आपको दिलचस्पी हो रही होगी कि मैती दा दुकान पर बैठने के पहले क्या काम किया करते थे? दादा आवाज़ को बताते हैं कि उनका जन्म खड़गपुर में ही हुआ था और उनके पिता रेलवे में ऑफ़िसर थे तथा उनकी माता श्री घर-गृहस्थी से जुड़ी हुईं थीं। उन्होंने दुकान का कार्य लगभग 21 वर्ष की आयु में आरंभ किया था। उससे पहले वे सजावट के व्यवसाय में थे और पोल्ट्री से अपना गुज़ारा करते थे।

    मैती दा बताते हैं कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान आर.पी. हॉल में क्या-क्या बदलाव देखे। जब वे आर.पी. हॉल आये ही थे तब “इल्लू” या “Illumination” की प्रथा खड़गपुर में शुरू ही हुई थी जिसमें दिवाली के अवसर पर छात्र अपने छात्रावास सजाते हैं तथा रंगोली और दीयों की सजावट की प्रत्योगिता में अपने हॉल को सबसे बेहतरीन पेश करना चाहते हैं। उस समय यह एक प्रतियोगिता न हो कर छात्रों के लिए दिवाली मनाने का साधन हुआ करता था, जो आज विश्व का सबसे बड़ा दिवाली महोत्सव होता है किसी भी वश्वविद्यालय में। आर.पी. हॉल में भी पहले “इल्लू” में छोटे, सरल एवं सादी रचनाओं का चलन हुआ करता था। आज-कल तो बहुत दिमाग लगा के महाभारत तथा रामायण के बड़े-बड़े दृश्यों को दीयों से बनाया जाता है।

    दादा आगे बताते हैं कि एक ज़माना था जब आर.पी. हॉल में प्रथम-वर्षीय छात्र भी रुका करते थे। तब हर हॉल में रैगिंग हुआ करती थी। छोटा हो या बड़ी कद-काठी का, पतला हो या मोटा, काला हो या गोरा, रैगिंग सभी फच्चों की होती थी। तब तो दादा की आयु भी इतनी ज़्यादा नहीं थी। उनका कहना है कि वे खुद आर.पी. हॉल के गेट पर बैठकर आते-जाते फच्चों की रैगिंग लेते थे। समय के साथ उन्हें भी महसूस हुआ कि वे गलत कर रहे थे तो उन्होंने अपनी दिनचर्या से रैगिंग को हटा दिया तथा नेक राह पर चलने का निर्णय लिया।

    उनके 45 वर्ष लम्बे कार्यकाल को देख एक प्रश्न ज़रूर उत्पन्न होता होगा - कि दादा ने कितने बड़े-बड़े पूर्व छात्र अथवा एलुमनाई को अपने सामने बड़ा होते देखा होगा? मैती दा का इस बात पर कहना था कि खड़गपुर में कईं प्रोफ़ेसर उन्ही के सामने बड़े हुए थे। कुछ प्रोफ़ेसर के अनेक किस्से-कहानियाँ आज भी दादा के दिमाग में छपी हुई हैं। आज भी दादा उन प्रोफ़ेसरों से जा के मिलते रहते हैं उनके डिपार्टमेंट में।

    मात्र एक छोटी-सी दुकान का थोड़ा-थोड़ा सामान बेचके आज की बढ़ती दुनिया में खर्चा निकालना मुश्किल है। दादा अपनी बाकी ज़रूरतों को पूर्ण करने के लिए कईं डिपार्टमेंट में थोड़ा-सा स्टेशनरी का सामान उपलब्ध करते हैं। अपनी 66 वर्ष की आयु में भी मैती दा हर दिन अपने घर से कैंपस साइकिल पर आते-जाते हैं। दिन का वे 32 किलोमीटर साइकिल चलाते हैं, जो काफी चौका देने वाली बात है।

    दादा ने अपने जीवन में दो भावों को सबसे ज़्यादा मेहत्ता दी है - एक ईमानदारी और दूसरा अच्छा व्यवहार। वे आज भी इन सिद्धांतों से कभी नहीं मुकरते हैं। KGP की जनता के लिए मैती दा ये ही संदेश देते हैं कि हर पल यहाँ ईमानदारी एवं अच्छे व्यवहार के साथ बिताएं तथा KGP लाइफ का आनंद उठाएं। इसी अच्छी सी सीख को लेकर हम मैती दा से विदा लेते हैं।